Saturday, May 21, 2011

जीना यहाँ मरना यहाँ

     च आय - -अम्मी , चाय |
     रात के सन्नाटे को चीरती हुई मध्धिम सी बारीक आवाज , सास जीवन बाई के कानो से टकराई जो अपनी बहु के बिस्तर के पास दीवार से टिककर उसके पैर दबाते-दबाते जाने कब नींद की आगोश मे समां गई थी |

(२)     ' अभी बना कर लाई ' कह कर उठते हुए एक उडती सी नजर दीवार घडी पर डाली, रात के तीन बजे थे | पास ही तीनो पोते-पोतिया अस्त व्यस्त से एक दुसरे मे उलझे हुए सो रहे थे | पिछले एक साल से बड़ी बहु बिस्तर पर थी और जीवन की यह दिनचर्या बन गई थी | सोने, जागने ,खाने-पिने , का क्रम सब गड़बड़ा गया था | हर समय एक ही चिंता लगी रहती थी की, क्या होगा ? एक अज्ञात अनिष्ट की आशंका से भय लगता था | बेटे का स्वभाव से सरल होना, पारिवारिक एवं सामाजिक तथा भविष्य की पेचीदगियो से अनभिज्ञ, अपनी दुकान में व्यस्त |
' ले, उठ, चाय पी ले, बहु को उठाते हुए जीवन बोली | गर्दन के पीछे हाथ लगा कर, सहारे से धीरे से उठाते हुवे, होटो से कप लगा चाय पिला कर धीरे से सुला दिया | बहु को सोती देख और एक नजर बच्चो पर डाल दीवार के सहारे पीठ टिका कर बैठ गई और विचारो ने उसे १३ साल पीछे धकेल दिया | उसे याद आया अपनी बहन का वाक्य -" अरे, सोचती क्या है, लड़की हीरा है, हीरा | तेरे राजेंद्र के लिए, बड़ी सुन्दर जोड़ी जमेगी | ऐसे अच्छे परिवार की लड़की पूरी जात में ढूंढे से नहीं मिलेगी | वास्तव मे लड़की हीरा थी | गोर वर्ण, तीखे नैन, ख़ूबसूरत नाक-नक्ष, कद-काठी, पड़ी लिखी और व्यवहार मे उत्तम | शादी हो गई | देखने वाले राधा-कृष्ण की जोड़ी कहते नहीं अघाते | समय और संसार अपनी गति से चलता रहा और देखते-ही-देखते तीन बच्चे हो गए |

(३)      बहु को हल्का सा बुखार आया, ठीक नहीं हुआ, कमजोरी गई | कसबे के डाक्टर ने पास के बड़े शहर में किसी विशेषज्ञ से जाँच कराने की सलाह दी | जाँच में डाक्टर ने बताया शायद कैंसर है, सार्कोमा | सभी अवाक रह गए | इतनी कम उम्र मे, अभी तो जिन्दगी के सिर्फ तीस बसंत ही देखे है, बच्चे भी छोटे है | बम्बई ले गए इलाज के लिए | पुरे पंद्रह दिन रखा, टाटा अस्पताल मे सिर्फ जाँच, जाँच, और जाँच | पैसा पानी की तरह बहा | डाक्टर ने दवाई लिख दी, कहा घर ले जाओ,यहाँ रखने से मतलब नहीं |

(४)        तब से, एक साल हो गया, बिस्तर पर पड़ी है | पुरे बदन में दर्द रहता है | दिन भर हाथ-पैर दबाते-दबाते मेरे हाथ दुखने लगे | आज तीन बार नहाना हो गया | अब तो पेशाब\पाखाना सभी बिस्तर पर | दोनो पैर रह गए, उठा भी नहीं जाता, करवट भी बदली नहीं जाती | सोये रहने से पीठ पर घाव हो गए जिनमे मवाद भर गया | कब बिस्तर गीला हो गया पता ही नहीं चलता | वो तो पैर दबाते समय कही उंगलिया गीली हो जाय या फिर थोड़ी-थोड़ी देर मे देखते रहो | कपडे बदलो, फिर नहाओ | बस, यही दिनचर्या हो गई है, अब तो सपने मे भी बहू ही दिखती है |एक दिन मुझसे कहा , की मेरा तो पूजा-पाठ मंदिर देवदर्शन सब बंद हो गए | रिश्तेदारी मे शादी-समारोह, तीज-त्यौहार और किसी के घर भी जाना अच्छा नहीं लगता | घर मे ही कैद हो गई हूँ | मैंने, वातावरण को हल्का बनाते हुए दार्शनिक अंदाज मे कहा, शायद पिछले जनम मे ये आपकी सास रही होगी और आप बहू, और जो सेवा अधूरी रह गई होगी उसे अब इस जनम मे पूरी करवा रही है |

(५) भाभी मेरे लिए चाय बनाने की कह कर किचन मे चली गई | मैं, खयालो मे खो गया, जीवन नाम किसी पुरुष का होना तो सुना है, लेकिन महिला का नाम ,और वो भी जीवन, बहुत कम देखने सुनने मे आया | पता नहीं क्या सोच कर माता-पिता ने जीवन नाम रखा, जबकि उनके सभी भाई-बहनो के नाम तो भगवान् के नामो पर रखे| सिर्फ भाभी का नाम ही जीवन क्यो रखा ? मेरा पूरा बचपन गुजर गया उन के  साथ रहते हुए, यह सोच सोच कर | कहते हैं उम्र बढने के साथ साथ अनुभव भी  बढता है | आज पुरानी यादो के झरोखो मे झांक कर   देखता हूँ तो मालूम होता है की उनके माता-पिता ने चाहे अनजाने मे या लाड़ से यह नाम रखा हो, लेकिन आज उन्होने बहु  को अपना  जीवन देकर अपना नाम सार्थक कर दिया |

(६)    अब बेटे ने  रेल पास बनवा लिया है | अक्सर ही पास के  बड़े शहर  की मण्डी मैं दुकान का सामान लेने जाना पड़ता है |घर मैं पत्नी का कराहना, दर्द, परेशानी देखि नहीं जाती | घर मैं खाना भाता नहीं इसलिए टिफिन साथ लेकर रेल   मे ही खाना खाता है| एक ही ख्याल आता है, क्या होगा भविष्य ? रेलगाड़ी एक झटके के साथ रुक गई और विचारों की तन्द्रा टूट गई | खिड़की के बाहर नजर डाली , देखा उज्जैन के बाद पहला ही स्टेशन है विक्रमनगर | और निगाहे लोहे के पाईप बनाने के एक बंद कारखाने के टीनशेड पर, जंग लगते हुए ढांचे पर पड़ी | मैदान मे ऊँची-ऊँची घास उग आई थी | सोचा जब इसमें मेरे काका काम करते थे तब कैसी चहल-पहल रहती थी | रेल इंजन की शंटिंग, मजदूरों का शोरगुल , मशीनों की आवाजे और थर्राहट , चिमनी से उठता हुआ धुंवा | और आज एकदम सन्नाटा - वीरानी | शायद इस फैक्ट्री और मेरी तक़दीर मैं कुछ साम्य है|  तभी सिटी की एक तेज चीख के साथ रेल चल पड़ी और बेटा मण्डी के भावो के उतार-चड़ाव मे खो गया |
(७)    बहू का देवलोकगमन हो गया | आज तेरहवी है ,घर मैं भीड़ है, ब्रह्मभोज है | और कमरे मे, मैं उसी जगह पर बैठा हूँ , जहाँ वह दो बरसों से लेटी हुई थी बिना हिले-डुले बिलकुल पिरामिड की ममी की तरह कपडे मे लिपटी हुई |पूरा परिद्रश्य किसी चलचित्र की मानिंद दिखाई देने लगा | सोचा नियति भी क्या रंग दिखाती है | वाकई ये जीवन एक रंगमंच है, पर्दा गिरता है, पर्दा उठता है, रौशनी होती है, एक द्रश्य मंच  पर आँखों के सामने प्रस्तुत होता है, कुछ समय चलता है, पात्र रहता है| तभी रौशनी मंद हुई, हल्का अँधेरा छाया और कुछ देर बाद उजाले मे दूसरा द्रश्य , दूसरा पात्र आता है, अलग रंग की रौशनी मे, अलग वेशभूषा मे, अलग संवादों के साथ |  सोचता हूँ ये नाटक नहीं सर्कस है | एक गीत के अनुसार - हाँ बाबु ये सर्कस है, और इस सर्कस मे छोटे को भी, बड़े को भी, अच्छे को भी, बुरे को भी, खरे को भी, खोटे को भी, नीचे से ऊपर को, ऊपर से नीचे को आनाजाना पड़ता है-  और रिंग मास्टर के कोड़े को .............बस रुको | यही आकर चित्त भ्रमित हो जाता है | क्या चाहता है ये ऊँचे आसमान मे बैठा रिंग मास्टर ? क्यों  मौत के कोड़े से ही ठीक करना चाहता है ?  उनको जिनके अभी खेलने-खाने के दिन थे, खिलखिलाने और गुनगुनाने के दिन थे | न मैं समझ पाया, न जीवन और न ही बेटा, और न ही शायद बहु जो अनचाहे ही उस रिंग मास्टर के पास पहुँच गई  |
(8)    जीना यहाँ मरना यहाँ, इसके सिवा जाना कहाँ ? ? ?

3 comments:

  1. padh kr aakho me aansu aagaye.aap har lamhe ko badi gehrai se sochto ho papa.

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  2. Didi ki bat se mai bhi puri tarha sehmat hu papa, padte padte aapki likhi hui bate drushya bankar samne aagye aur mere romte kade ho gaye. Agar aap ye bat mujhe apne samne baithakar batate to mere aansu ruk nai pate....

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