Monday, September 26, 2011

Tera Tujko Arpan urf Vasiatnama : Part 3

     दुसरे नंबर पर जमीन - कट | नहीं है | मैं जीवन भर जमीन पर ही रहा | आसमान में नहीं उड़ा | उड़ने के सपने अवश्य देखे, लेकिन किस्मत ने पंख कुतरकर उन्हें साकार नहीं होने दिया | न तू जमीं के लिए है न आसमां के लिए , तेरा वजूद है सिर्फ दास्ताँ के लिए | इंसान का मन बड़ा विचित्र है | अभावों से असंतोष तो समझा जा सकता है, पर जिन सपनो को साकार करने के लिए, आदमी जीवनभर मरता-खपता रहता है, जब वे पुरे हो जाते है, तब भी वह उनसे संतुष्ट नहीं होता | किसी ने कहा है - "जिन्दगी जिससे इबारत हो, वो जीस्त कहाँ | यू तो कहने के तई  कहिए, कि हाँ , जीते है ||"
          तीसरे नंबर पर - केश/रकम | कहते है बच्चों को धन मत दो, अच्छी शिक्षा दो | वही किया, सब शिक्षा मे खर्च कर दिया | पूत सपूत तो क्यों धन संचय, पूत कपूत तो क्यों धन संचय | परिणाम उज्जवल रहा | बर्तन-भांडे , कपडे-लत्ते, लकड़ी-लोहे का सामान सब में बराबर-बराबर बाँट दिया गया है | 
      इस वसीयतनामे के द्वारा जो सोंप रहा हूँ भौतिक संपत्ति , इसमें नई बात कुछ भी नहीं है | ये परंपरा से चला आ रहा है | असली संपत्ति, मेरे वरिष्ठजनो ने उनके अनुभव, जीवन-मूल्य जो मुझे दिए है, वही विरासत में तुम्हे सोंप रहा हूँ | इस बात कि सदा सावधानी रखना कि कभी नीचा न देखना पड़े | ईमानदारी और मेहनत से पुरुषार्थ करना | शायद इसलीए अपने पूर्वजो का असीम आशीर्वाद और सुविधाए भाग्यवश प्राप्त हुई है | तुम्हे इनका जीवन में होशियारी से उपयोग करना है | परिवार के साथ ही, समाज और देश के प्रति भी दाइत्व निभाना है | मेरी परमपिता परमेश्वर से कर-बध्द प्रार्थना है कि तुम्हे जीवन में कभी विफलताओ का अनुभव करना ही नहीं पड़े |
     अब यह वसीयत लेख समाप्त कर रहा हूँ | इस क्षण तक तो मैं तुम्हारे साथ हूँ, पर अधिक समय तक तुम्हारा साथ न दे सकूँगा | हम सब, जब साथ साथ थे से अब तक मैंने तुम सबसे ह्रदय के तल से प्यार किया है, प्रेम दिया है, और तुमने भी जो प्रेम और सुख दिया है, उसकी पूर्ति में कभी नहीं कर सकता | जब तक इस संसार में रहूँगा , अंतिम क्षण तक तुम्हारे प्यार कि गर्माहट महसूस करता रहूँगा | अपनी माँ का ध्यान रखना | वह बहुत दयालु है | हमदोनो के बीच अगर कुछ लेनदेन हुआ है, तो वो सिर्फ प्रेम का हुआ है, बस | जिस व्यक्ति ने हमेशा भावना के स्थान पर विवेक को महत्व दिया हो, वह अंतिम समय में विवेक से दूर रहकर भावना में कैसे बह सकता है | विशेषरूप से जबकि, मौत ह्रदय के द्वार पर खड़ी है | मेरे बाद दुखी मत होना | यदि मन कभी उदास हो, कोई निराशा महसूस हो तो मुझे याद कर लेना | मैं जहाँ भी रहूँगा, तुम्हे देखूंगा और पुन: आत्मविश्वास के साथ, तुम्हे मुस्कराते हुए खड़े होने के लिए प्रेरित करूँगा | 
     अंत में, यह वसीयतनामा अपनी समस्त चल-अचल संपत्ति के सम्बन्ध में, राजी-ख़ुशी से, स्वेच्छा से,बिना किसी मादक द्रव्य का सेवन किए, किसी दबाव व लालच के बिना, लिख दिया व गवाहों के समक्ष हस्ताक्षर कर दिया ताकि सनद रहे व वक़्त-जरुरत काम आवे |  इति ||  

Saturday, September 24, 2011

Tera Tujko Arpan urf Vasiatnama : Part 2

          ढ़ेर सारी दवाईयाँ जिन्दगी भर मुझे लेनी है, अपने बी.पी. को काबू में रखना है,परहेज से रहना है,नमक,घी,तेल, आदि बहुत सी मनपसंद चीजें नहीं खाना है और बेकार की ,बिनास्वाद  का भोजन करना है अब क्या होगा ? इस घटते क्रम के साथ, सोचा संतुलित जीवन जीना होगा. प्राप्त अनुभव ,अध्ययन -चिंतन-मनन-पर्यटन से प्रेम मोहब्बत के आदान-प्रदान  के आधार पर शेष आयु काटनी कठिन नहीं होगी. वर्षो से रुकी-छुपी-दबी तमन्नाओ को पूरा करने का अब वक़्त आ गया है. साथ ही अपने से बड़े बुजुर्गो की और भी देखूं, उनसे प्रेरणा लू , की वे जीवन से कैसे संघर्ष कर रहे है. कंधे से कन्धा मिलाकर चल रहे है. अपने जीवन के उत्तरार्ध की राह खुद बनानी है और खिलखिलाते हुवे जग छोड़ना है. पचास के बाद को वानप्रस्थाश्रम कहते है, वन को जाना . निश्चय किया की बाबाजी बनके जंगल/हिमालय तो नहीं जाऊंगा, परन्तु साधू जैसी मनस्तिथि में जीऊंगा. अपनी लगन से, धुन से, इस जीवन से अंतिम समय तक लड़ता रहूँगा. देखते है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है

     हाँ, तो अब असली मुद्दे पर-------वसीयत लिखना---

     यह की मेरी समस्त चल-अचल संपत्ति, जमीन-जयदाद, घर-मकान, केश,रकम,सारा सामान [ जिसका पूर्ण विवरण सलग्न सूची  में दिया गया है जो इस वसीअतनामे का अभिन्न अंग है ] का ठीक-ठीक बंटवारा कर देना चाहिए ,जिससे उतराधिकारियो में कोर्ट-कचेरी की नौबत नहीं आए .   

     सबसे पहले मकान को ले. एक ही मकान है- पुश्तैनी . सात-बाश्शा की गली के मुहाने से खजुरवाली मस्जिद के बीच मुख्य सड़क पर. मकान एक मंजला आगे , दो-पाट की दोड़ का पक्का, बीच में खुला बाड़ा,पीछे गली की तरफ मिट्टी का कच्चा बना है. सच्ची बात तो यह है की, यह मकान मैंने नहीं ख़रीदा - मुझे फ्री में पिताजी से वसीयत में मिला है. इसलिए मेरा कहना ठीक नहीं होगा. यह अवश्य है की इसमें मेरा जन्म हुआ, बड़ा हुआ , शादी हुई, बच्चे हुए और क़ानूनी रूप से सरकारी दस्तावेजो में मालिक हूँ .
     सच तो यह है की इसका मैंने सराय की तरह उपयोग किया है . रहा और छोड़ा . गीता में भी कृष्ण ने कहा है- "तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया ? तुमने जो लिया , यही से लिया . जो दिया यही पर दिया. जो आज तुम्हारा है, कल किसी और का था, परसों किसी और का हो जायगा. परिवर्तन संसार का नियम है. " मतलब तेरा तुजको अर्पण. अब बच्चों को सोंप रहा हूँ, वे ही मालिक है. जैसे चाहे रहे. दिली इच्छा है, जब भी रहे साथ-साथ एक चूल्हे के रहे. तीनो के इनिशिअल से राम बनता है.
     अपना क्या है ? बच्चों के साथ रहने का भी आनंद उठाओ. सोचता हूँ, शायद,यही तरीका, सही तरीका है जीवन बिताने का , आज यहाँ तो कल वहां . बस घूमते रहो जब तक हाथ-पैर साथ देते है. दुनिया देखो किसी भी जगह टिको नहीं. दिन रात, चाँद सूरज की तरह एक दुसरे का पीछा करते हुवे धरती का चक्कर लगाते रहो. 
                                                                                                            क्रमश: पार्ट-3

Friday, September 23, 2011

Tera Tujko Arpan urf Vasiatnama : Part 1

      मैं यह वसीयतनामा लिखनेवाला, नाम अमुक, वल्द अमुक, जाति अमुक, निवासी खजुरवाली मस्जिद के पास, शहर उज्जैन का रहनेवाला हूँ | उम्र ५० साल [ पूरे पच्चास, उम्र के आंकड़े से तो अभी वसीयत लिखने का वक़्त नहीं आया हैं , फिर भी ] एक तरह से जीवन पाकर हम प्रतिक्षण बढते या घटते रहते है| बढते-बढते पचास के हो गए, यानि पचास वर्ष जी लिए और पचास वर्ष आयु के कम हो गए | [100 - 50=50 ] " जितनी बढती है, उतनी घटती है, उम्र अपने आप कटती है  |" 

           रोज शाम उम्र मेसे कटकर, एक दिन गिर जाता है , 
           और, आदमी है, की उस कटे हुए दिन को जोड़कर , 
           अपनी बड़ी हुई उम्र बताता है |  

       दिन प्रतिदिन उम्र कभी हंसकर - रोकर, कभी खुश - उदास होकर, कभी मस्ती मे बह कर, कभी पस्ती मे घिसटकर, कभी श्रम-संघर्ष मे डटकर, और कभी अपने मे सिमटकर काटनी पड़ी है | अगर सौ वर्ष जीना माने [ कौन जीता है ? ] तो 1 से  50  तक बढने का क्रम था, अब , माय नस 50 से  1  [यानि 51  से 100 ] घटने का क्रम शुरू होता है | सोचता हूँ बढते हुए क्रम के साथ बढता हुआ बल था, पौरुष था, अदम्य साहस था, हसरते थी, कुछ कर गुजरने का जज्बा था | पर अब घटते क्रम की शुरुवात मे वसीयत लिखना है,  ये क्यों हुआ, इसका कारण है, वही बताता हूँ |

          एक दिन बैचेनी और घबराहट होने लगी | शरीर गर्म हो गया | डॉक्टर से चेकअप करवाने से पता चला के मुझे दिल का रोग है  [ ये रोग उन्हें ही होता है, जिनके पास दिल होता है ] साथ ही हाई ब्लड -प्रेशर याने उच्च रक्तचाप भी है [ इसका मतलब, खून खौलना और उच्च स्तर पर पहुचना भी वीरता का एक गुण माना जाता है ] |

          सब घबराये कि मुझे गंभीर बीमारी है, और कभी भी धड़कन बंद हो सकती है, यानि राम नाम सत | सच्चे मित्रो ने सलाह दी कि अब मुझे वसीयत लिख देना चाहिए | यह पक्की बात है कि जीवन का उल्लास वही खत्म हो जाता है, जहाँ आदमी अपने जीवन के बारे में ज्यादा सोचने लग जाता है | सोचा, जब होनी स्वीकार ही करना पड़ रही है तो विवशता से स्वीकार करने से अच्छा है कि हिम्मत के साथ स्वीकार की जाये | क्योंकि कुछ बातें न पूछने की होती है , न बताने की होती है, सिर्फ समझने की होती है और समझ कर चुप रहने की होती है |  
                                                                                                             क्रमश......पार्ट-२ 


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