Saturday, September 24, 2011

Tera Tujko Arpan urf Vasiatnama : Part 2

          ढ़ेर सारी दवाईयाँ जिन्दगी भर मुझे लेनी है, अपने बी.पी. को काबू में रखना है,परहेज से रहना है,नमक,घी,तेल, आदि बहुत सी मनपसंद चीजें नहीं खाना है और बेकार की ,बिनास्वाद  का भोजन करना है अब क्या होगा ? इस घटते क्रम के साथ, सोचा संतुलित जीवन जीना होगा. प्राप्त अनुभव ,अध्ययन -चिंतन-मनन-पर्यटन से प्रेम मोहब्बत के आदान-प्रदान  के आधार पर शेष आयु काटनी कठिन नहीं होगी. वर्षो से रुकी-छुपी-दबी तमन्नाओ को पूरा करने का अब वक़्त आ गया है. साथ ही अपने से बड़े बुजुर्गो की और भी देखूं, उनसे प्रेरणा लू , की वे जीवन से कैसे संघर्ष कर रहे है. कंधे से कन्धा मिलाकर चल रहे है. अपने जीवन के उत्तरार्ध की राह खुद बनानी है और खिलखिलाते हुवे जग छोड़ना है. पचास के बाद को वानप्रस्थाश्रम कहते है, वन को जाना . निश्चय किया की बाबाजी बनके जंगल/हिमालय तो नहीं जाऊंगा, परन्तु साधू जैसी मनस्तिथि में जीऊंगा. अपनी लगन से, धुन से, इस जीवन से अंतिम समय तक लड़ता रहूँगा. देखते है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है

     हाँ, तो अब असली मुद्दे पर-------वसीयत लिखना---

     यह की मेरी समस्त चल-अचल संपत्ति, जमीन-जयदाद, घर-मकान, केश,रकम,सारा सामान [ जिसका पूर्ण विवरण सलग्न सूची  में दिया गया है जो इस वसीअतनामे का अभिन्न अंग है ] का ठीक-ठीक बंटवारा कर देना चाहिए ,जिससे उतराधिकारियो में कोर्ट-कचेरी की नौबत नहीं आए .   

     सबसे पहले मकान को ले. एक ही मकान है- पुश्तैनी . सात-बाश्शा की गली के मुहाने से खजुरवाली मस्जिद के बीच मुख्य सड़क पर. मकान एक मंजला आगे , दो-पाट की दोड़ का पक्का, बीच में खुला बाड़ा,पीछे गली की तरफ मिट्टी का कच्चा बना है. सच्ची बात तो यह है की, यह मकान मैंने नहीं ख़रीदा - मुझे फ्री में पिताजी से वसीयत में मिला है. इसलिए मेरा कहना ठीक नहीं होगा. यह अवश्य है की इसमें मेरा जन्म हुआ, बड़ा हुआ , शादी हुई, बच्चे हुए और क़ानूनी रूप से सरकारी दस्तावेजो में मालिक हूँ .
     सच तो यह है की इसका मैंने सराय की तरह उपयोग किया है . रहा और छोड़ा . गीता में भी कृष्ण ने कहा है- "तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया ? तुमने जो लिया , यही से लिया . जो दिया यही पर दिया. जो आज तुम्हारा है, कल किसी और का था, परसों किसी और का हो जायगा. परिवर्तन संसार का नियम है. " मतलब तेरा तुजको अर्पण. अब बच्चों को सोंप रहा हूँ, वे ही मालिक है. जैसे चाहे रहे. दिली इच्छा है, जब भी रहे साथ-साथ एक चूल्हे के रहे. तीनो के इनिशिअल से राम बनता है.
     अपना क्या है ? बच्चों के साथ रहने का भी आनंद उठाओ. सोचता हूँ, शायद,यही तरीका, सही तरीका है जीवन बिताने का , आज यहाँ तो कल वहां . बस घूमते रहो जब तक हाथ-पैर साथ देते है. दुनिया देखो किसी भी जगह टिको नहीं. दिन रात, चाँद सूरज की तरह एक दुसरे का पीछा करते हुवे धरती का चक्कर लगाते रहो. 
                                                                                                            क्रमश: पार्ट-3

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